Saturday, September 14, 2024

छुपा रूस्तम

 किसी भूले बचपन की यादें सहेजता जाता हूँ 

मैं सबसे छुपाकर उनका बचपन जिए जाता हूँ 


कोई राही है शायद उलझा है अपनी ही राह में 

मैं मंद हवा का झौंका बन, उसको उलझन भुलाये जाता हूँ 


बहुत खुश है भँवरा रंगीले फूलों की लड़ियाँ देख कर

उसे क्या पता मैं उसे अपनी और खींचे जाता हूँ 


छुपा रही है गिलहरी बीज अपने कल के लिए 

मैं उसकी भूल पर नया जन्म लिए जाता हूँ 


सब खुश है फलों पर निशाना साध कर 

उन्हें क्या पता ओस बन रात भर आंसू बहाता हूँ


मत पूछ मुझसे कौन सी डगर है मेरा बसेरा 

मैं तो हर डगर तुम्हारी छांव बन जाता हूँ


तुम बंधे हो अपने सपनो की ऊंचाई से 

मैं तो तुमसे मिलकर हर रोज कुछ बढ़ जाता हूँ  


बादल आये है सबके लिए बरखा लेकर 

मैं चुपके से सागर का संदेशा सुने जाता हूँ 


सब तरफ भले ही मेरी हरियाली छायी 

मैं सवत्र प्रत्यक्ष छुपा रुस्तम कहलाता हूँ

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