कभी हमने ज़िन्दगी से मजाक किया
कभी ज़िन्दगी ने हमसे
कभी हम खुल के हंसे
कभी न खुल पाए न हंस ही सके
कल जो चौराहे पे मिली
शायद वो ज़िन्दगी ही थी
लेकिन कुछ इस तरह मिली
कि मिलने की प्यास फिर भी रह गयी
शायद आईने में जो मुरझाई पड़ी है
वो ज़िन्दगी है
या फिर कौने में धुल खाती किताब
वो भी ज़िन्दगी है
ये सवाल ज़िन्दगी है
या इनके जवाब ज़िन्दगी है
ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी है
या इसका इंतज़ार ज़िन्दगी है
कभी सोचता हूँ अकेले में
हर एक वो सोच ज़िन्दगी है
या फिर दोस्तों के बीच
वो हर एक पागलपन ज़िन्दगी है
मैं ज़िन्दगी हूँ
या मेरा अधूरापन ज़िन्दगी है
जब ये रोये तो जिंदगी है
या इसका हर एक मजाक ज़िन्दगी है???
Wednesday, December 17, 2008
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