Saturday, April 12, 2008

Deep inside...

Jab khamosh ho jati hai juban,
To bol jati hai dhadkane.
Fir tere ek hi ehsaas se,
Dhadkan bhi meri kyon hai ruk jati?

Apne se jyada jana hai shayad tujhe,
Har pal hai intzar tera.
Fir jab aati hai samne tu mere,
Yeh jhijhak kyon kahin se aa jati?

Kitna kuch hai kehna baki,
Aur waqt bahut kam.
Fir jab hoti hai samne tu mere,
Juban aur aankhien kyon paththar hai ban jati?

Sochta hoon main har pal tujhe,
Aaine me dikhta hai chehra tera.
Fir jab hoti hai jab baat tujhse,
Kyon teri pahchan mujhse anjaan hai ban jati?

Sabse khubsurat pal hain zindagi ke,
Jo pal sath gujre hai tere.
Fir bhi chah kar bhi,
Zindagi puri kyon khubsurat ban nahi jati?

Bas aisi hai woh... बस ऐसी है वो

सबके जैसी ... पर सबसे अलग

एक ख्वाब... एक हकीक़त
एक जिस्म्... एक साया
बस अपने ही जैसी है वो...

बारिश के इन्द्रधनुष को
सपने के पंख लगा दो
तो बस वैसी है वो...

सुबह की पहली किरण को
घुंघरू पहना दो
तो बस वैसी है वो...

चांदनी रात में पूरे चाँद को
एक मोती लगा दो
तो बस वैसी है वो...

रोते हुए किसी बच्चे को
फिर से हंसा दो
तो बस वैसी है वो...

अपनी बरसों की कल्पना को
हकीक़त बना दो
तो बस वैसी है वो...

बारिश के बहते पानी में
कागज़ की नाव चला दो
तो बस वैसी है वो...

हरी दूब के पत्ते से
ओस की बूँद चुरा लो
तो बस वैसी है वो...

कैसे कह दूं
कैसी है वो?
बस अपने ही जैसी है वो...

Tab aur ab...

बचपन के वो दिन भुलाऊँ कैसे?

हर एक बात बार बहा देते थे आंसू की नदी,
आज भर आये मन तो चुप हो जाऊं कैसे?

हर एक राह बुलाती कहती थी घर लौट जाने को,
आज जब मैं राह भूलूँ तो घर जाऊं कैसे?

दिन में कई बार रूठ्ते और मनाते...
अब कोई रुठ्ता भी नहीं तो किसी को मनाऊं कैसे?