Friday, September 20, 2024

उसने कभी कुछ कहा ही नहीं

वो तो सदा वैसी ही थी 

हो सर्दी, गर्मी या बरसात 

पर मन मेरा ही बदल गया 

उन बदलती ऋतुओं के साथ  


सपने इतने छोटे भी न थे 

कि उन्हें यूँ ही मुरझाने दे सके 

पर सपने कभी इतने बड़े भी न हुए 

कि उनकी छाँव में घरौंदा बनाया जा सके 


पर वो तो सदा वैसी ही थी 

शायद किसी भी सपने से खरी 

पर सपने तो मेरे अपने ही थे 

और वो तो अभी भी एक स्वपन परी  


मन मेरा उस पर ठहरा है 

या ठहरा तूफान कोई मेरे इंतजार में 

उसने बस एक नजर देखा मुझे 

और मैं व्याकुल तूफान के इंतजार में


वो बस चलती अपनी धुन में 

मदमस्त बस अपनी डगर

शायद उसने पुकारा मुझे

और मन दौड़ चला उसकी डगर


समय जैसे उड़ चला और साथ में मन ले चला

मैं अब वहां पहुंचा जहां वो थी 

पर वो तो वहां मिली ही नहीं 

शायद कभी वो वहां थी ही नहीं ?


सपने सारे तो भीग गए 

फिर भी आँखों में कम होती नमी नहीं 

पर पता नहीं कैसे किसे मैं दोष दूँ 

उसने कभी कुछ कहा ही नहीं 


Saturday, September 14, 2024

तरुवर


मन में उठता है ये प्रश्न प्रखर 

तरुवर बनु मैं या बनु प्रियवर


तरुवर बनी तो घाव कंकर के पाऊँगी 

प्रियवर बनी तो आग़ोष में छुप जाऊंगी

तरुवर बनी तो तन्हा श्यामिल रात होगी  

प्रियवर बनी तो रात भर मन की बात होगी 

तरुवर बनी तो हर शाख कंपाती बरसात होगी 

प्रियवर बनी तो हर पल याद वाली बरसात होगी


फिर आता है वह प्रश्न मुखर 

तरुवर बनु मैं या बनु प्रियवर 

 

तरुवर घाव सहकर भी फूलों संग मुस्कराये हैं 

प्रियवर बाँहों में झूलकर भी मुरझाये है 

तरुवर ने तन्हा रातों में पंछियों को गीत सुनाये हैं 

प्रियवर ने रात भर दिल में अश्रु छुपाये हैं

तरुवर ने घनघोर बरसातों में भी भटके मुसाफिर बहलाये है 

प्रियवर ने धीमी बरसातों में भी सूखे ख्वाब भिगाये हैं 


पर क्यों आता है ये प्रश्न उभर 

तरुवर बनु मैं या बनु प्रियवर 


तरुवर भी तो कभी प्रियवर बन जाते है 

मंद हवा से सबका आलिंगन कर जाते हैं

प्रियवर भी तो कभी तरुवर बन जाते है

क्रोध व्यथा द्वन्द सब बन मौन सह जाते है

छुपा रूस्तम

 किसी भूले बचपन की यादें सहेजता जाता हूँ 

मैं सबसे छुपाकर उनका बचपन जिए जाता हूँ 


कोई राही है शायद उलझा है अपनी ही राह में 

मैं मंद हवा का झौंका बन, उसको उलझन भुलाये जाता हूँ 


बहुत खुश है भँवरा रंगीले फूलों की लड़ियाँ देख कर

उसे क्या पता मैं उसे अपनी और खींचे जाता हूँ 


छुपा रही है गिलहरी बीज अपने कल के लिए 

मैं उसकी भूल पर नया जन्म लिए जाता हूँ 


सब खुश है फलों पर निशाना साध कर 

उन्हें क्या पता ओस बन रात भर आंसू बहाता हूँ


मत पूछ मुझसे कौन सी डगर है मेरा बसेरा 

मैं तो हर डगर तुम्हारी छांव बन जाता हूँ


तुम बंधे हो अपने सपनो की ऊंचाई से 

मैं तो तुमसे मिलकर हर रोज कुछ बढ़ जाता हूँ  


बादल आये है सबके लिए बरखा लेकर 

मैं चुपके से सागर का संदेशा सुने जाता हूँ 


सब तरफ भले ही मेरी हरियाली छायी 

मैं सवत्र प्रत्यक्ष छुपा रुस्तम कहलाता हूँ