सबके जैसी ... पर सबसे अलग
एक ख्वाब... एक हकीक़त
एक जिस्म्... एक साया
बस अपने ही जैसी है वो...
बारिश के इन्द्रधनुष को
सपने के पंख लगा दो
तो बस वैसी है वो...
सुबह की पहली किरण को
घुंघरू पहना दो
तो बस वैसी है वो...
चांदनी रात में पूरे चाँद को
एक मोती लगा दो
तो बस वैसी है वो...
रोते हुए किसी बच्चे को
फिर से हंसा दो
तो बस वैसी है वो...
अपनी बरसों की कल्पना को
हकीक़त बना दो
तो बस वैसी है वो...
बारिश के बहते पानी में
कागज़ की नाव चला दो
तो बस वैसी है वो...
हरी दूब के पत्ते से
ओस की बूँद चुरा लो
तो बस वैसी है वो...
कैसे कह दूं
कैसी है वो?
बस अपने ही जैसी है वो...
Saturday, April 12, 2008
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