वो तो सदा वैसी ही थी
हो सर्दी, गर्मी या बरसात
पर मन मेरा ही बदल गया
उन बदलती ऋतुओं के साथ
सपने इतने छोटे भी न थे
कि उन्हें यूँ ही मुरझाने दे सके
पर सपने कभी इतने बड़े भी न हुए
कि उनकी छाँव में घरौंदा बनाया जा सके
पर वो तो सदा वैसी ही थी
शायद किसी भी सपने से खरी
पर सपने तो मेरे अपने ही थे
और वो तो अभी भी एक स्वपन परी
मन मेरा उस पर ठहरा है
या ठहरा तूफान कोई मेरे इंतजार में
उसने बस एक नजर देखा मुझे
और मैं व्याकुल तूफान के इंतजार में
वो बस चलती अपनी धुन में
मदमस्त बस अपनी डगर
शायद उसने पुकारा मुझे
और मन दौड़ चला उसकी डगर
समय जैसे उड़ चला और साथ में मन ले चला
मैं अब वहां पहुंचा जहां वो थी
पर वो तो वहां मिली ही नहीं
शायद कभी वो वहां थी ही नहीं ?
सपने सारे तो भीग गए
फिर भी आँखों में कम होती नमी नहीं
पर पता नहीं कैसे किसे मैं दोष दूँ
उसने कभी कुछ कहा ही नहीं